Kamakhya Devi: क्या आप जानते है कामाख्या देवी मंदिर का रहस्य, क्या सच में देवी की प्रतिमा होती रजस्वला ?

Kamakhya Devi: देश में हजारों ऐसे मंदिर है जहां पर कई सारे चमत्कार होते हैं जो भक्तों के विश्वास को और भी ज्यादा मजबूत करते हैं। आपने वैसे तो कई चमत्कारों के बारे में पढ़ा या सुना होगा। लेकिन शायद ही कहीं किसी देवी मंदिर में देवी मां के प्रतिमा रजस्वला होती है यानी कि उनके पीरियड्स आते हैं।

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अगर नहीं जानते तो चलिए आपको आर्टिकल के माध्यम से बताते हैं जहां देवी के रजस्वला होने के सबूत भी मिले हैं यह जगह है कामाख्या देवी मंदिर गुवाहाटी असम के नीलांचल पर्वत पर स्थित।

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कामाख्या देवी 52 शक्ति पीठों में से एक

कामाख्या देवी मंदिर देवी के 52 शक्तियों में से एक है और यह शक्तिपीठ तांत्रिक साधनाओं के लिए प्रसिद्ध है। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब देवी शक्ति ने यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति दे दी तब भगवान शिव ने माता सती का जला हुआ शरीर लेकर पूरे संसार में भ्रमण किया उनका क्रोध बढ़ता ही जा रहा था। तब स्थिति को संभालने के लिए श्री हरि ने अपने सुदर्शन चक्र से माता के पार्थिव शरीर को काटना शुरू किया।

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धरती पर जिन 52 स्थान पर देवी सती के श्री अंग गिरे वहीं पर 52 शक्तिपीठ की स्थापना हुई कहा जाता है कि नीलांचल पर्वत पर माता की योनि गिरी थी जिसके कारण वहां पर कामाख्या देवी शक्तिपीठ की स्थापना हुई।

Kamakhya Devi: यहां लगता है खास अंबुबाची मेला

ऐसी मान्यता है की माता की योनि नीचे गिरकर एक विग्रह में परिवर्तित हो गई थी जो आज भी मंदिर में विराजमान है जिससे माता की वह प्रतिमा रजस्वला होती है हर साल माता को पीरियड्स आते हैं यानी की माता रजस्वला होती हैं तब यहां अंबुबाची मेले का आयोजन होता है।

 उन दिनों माता भगवती के मंदिर के द्वार अपने आप बंद हो जाते हैं यह तीन दिन चलता है उन तीन दिनों में समस्त गुवाहाटी में ना तो कोई कार्य होता है ना ही कोई मंदिर खुलता है इसके बाद चौथे दिन कामाख्या देवी की मूर्ति को स्नान कर कर वैदिक अनुष्ठान आदि करके जनमानस के दर्शन हेतु पुनः खोल दिया जाता है।

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यहां मिलता है अनोखा और चमत्कारिक प्रसाद

यह मंदिर अपने आप में बेहद अनोखा है पूरे संसार में ऐसा चमत्कार और पूजा पद्धति कहीं और देखने नहीं मिलती है। अंबुबाची मेले के दौरान यहां बहुत ही अनोखा और चमत्कारिक प्रसाद मिलता है।

जो है लाल रंग का गीला वस्त्र है।

कहा जाता है की देवी के रजस्वला होने से पूर्व माता कामाख्या की प्रतिमा के आसपास सुखा सफेद कपड़ा बिछा दिया जाता है लेकिन तीन दिन बाद कपाट खुल जाते हैं तब यह वस्त्र माता की राज के कारण रक्त जैसे लाल हो जाते हैं और दिव्या प्रसादी वस्त्र को अंबुबाची वस्त्र कहा जाता है।

ऐसी मान्यता है कि इस वस्तु को धारण करके शक्ति की उपासना करने से सिद्धि सुलभता से प्राप्त हो जाती है।

नदी का पानी हो जाता है लाल

 हर वर्ष यहां पर माता के रजस्वला होने के दौरान पास में बह रही ब्रह्मपुत्र नदी का जल भी लाल हो जाता है कहते हैं कि कामाख्या देवी के रजस्वला को यही दर्शाता है इन दिनो इस नदी में स्नान करना भी वर्जित माना जाता है ।

यहां के तांत्रिकों को प्राप्त होती है सिद्धि

माना जाता है कि यहां के तांत्रिक को बुरी शक्तियों को दूर करने में सिद्धि प्राप्त होते हैं अपने शक्तियों का इस्तेमाल बहुत सोच विचार कर करते हैं कामाख्या के तांत्रिक और साधु चमत्कार करने में सक्षम होते हैं कई लोग विवाह बच्चे धन और दूसरी इच्छाओं की पूर्ति के लिए यहां की तीर्थ यात्रा करते हैं ।

कामाख्या मंदिर तीन हिस्सों में बना है पहला हिस्सा सबसे बड़ा है इसमें हर व्यक्ति को जाने नहीं दिया जाता दूसरे हिस्से में माता के दर्शन होते हैं जो एक पत्थर से हर वक्त पानी निकलता है कहा जाता है कि महीने के तीन दिन माता को मासिक धर्म होता है इन तीन दिनों मंदिर के कपाट बंद रहते हैं तीन दिन बाद बड़े धूमधाम से मंदिर के कपाट फिर से खोल दिए जाते हैं।

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