Mystery of lord Shiva: भगवान शिव के ये रहस्य नहीं जानते होंगे आप, जानकर उड़ जाएंगे आपके होश

Mystery of lord Shiva: हिंदू धर्म में भगवान शिव को प्रमुख देवताओं में से एक माना जाता है। सनातन धर्म में भगवान शिव को अनेक नाम से जानते हैं जैसे भोलेनाथ शंकर आदि देव महेश रूद्र नीलकंठ गंगाधर पुराण के मुताबिक भोलेनाथ स्वयंभू है फिर भी भगवान शंकर के जन्म से जुड़ी कई रहस्यमई कहानियां काफी फेमस है । कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति पूरी श्रद्धा के साथ भगवान शंकर की उपासना करता है उसकी हर मनोकामना पूरी होती है और शिव उस पर अपनी विशेष कृपा बनाए रखते हैं।

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भोलेनाथ के रहस्य

भगवान शंकर के बारे में कई ऐसी बातें हैं जो सामान्य व्यक्तियों को नहीं पता चलिए आज हम आपको भगवान शंकर के कुछ रहस्य के बारे में बताते हैं। पुराणों की माने तो जालंधर नामक राक्षस की उत्पत्ति भगवान शंकर के तेज से हुई थी इसीलिए उसे पुराण में शिव का एक अंश माना जाता है कुछ पौराणिक कथाओं में वर्णन मिलता है कि अंधक और खुजा भगवान शंकर के पुत्र थे परंतु धर्म शास्त्रों में इन दोनों का कहीं भी कोई उल्लेख नहीं है।

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कई जगह मिलता है भगवान भोलेनाथ का उल्लेख

सप्त ऋषियों को भगवान शंकर के प्रारंभिक शिष्य से माना जाता है कहा जाता है कि इन सप्तर्षियों के द्वारा ही पृथ्वी पर भगवान शिव के ज्ञान का प्रचार प्रसार किया गया कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम मानते हैं। परंतु तस्वीरों में दोनों की आकृति अलग-अलग है कई तस्वीरों में शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए दिखाया गया है। भगवान शिव की पत्नियों के बारे में शास्त्रों में कई उल्लेख मिलते हैं।

Mystery of lord Shiva: शिव जी के पत्नियों का भी है जिक्र

पहली पत्नी प्रजापति दक्ष की पुत्री सती थी उन्होंने दूसरा जन्म हिमान के लिया और पार्वती के नाम से जानी गई। कहा जाता है कि इसके अलावा गंगा काली और उमा भी शिव की ही पत्नी थी। भगवान विष्णु और माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय गणेश दूसरे पुत्र जिसे माता पार्वती ने उबटन से बनाया था। एक अनाथ बालक जिसका नाम सुकेश था उसे भी भगवान शिव नेपाल जालंधर शिव के तेज से उत्पन्न हुआ।

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अय्यप्पा शिव और मोहिनी के सहयोग से जन्मे भूरा उनके ललाट से टपके पसीने से जल में अंदर को खुजा का ज्यादा कहीं उल्लेख नहीं मिलता है कहा जाता है कि शिव ही एक मात्र से देवता है जिन्होंने हर काल में अपने भक्तों को दर्शन दिया वह सतयुग में समुद्र मंथन के समय भी उपस्थित थे महाभारत में भी थे और काली काल में विक्रमादित्य को भी शिव के दर्शन होने का उल्लेख मिलता है।

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