Supreme Court:30 साल तक झेला पत्नी की मौत का दाग, सुप्रीम कोर्ट ने किया 10 मिनट में बरी, पढ़े क्या है पूरा मामला ?

Supreme Court: एक शख्स को निर्दोष साबित होने में पूरी उम्र बीत गई अपनी ही पत्नी की मौत का दाग लिए एक शख्स तकरीबन 30 साल से न्याय के लिए भटक रहा था। सुप्रीम कोर्ट ने 10 मिनट के अंदर उसे दोष मुक्त कर दिया । इस दौरान शीर्षक अदालत ने सिस्टम पर कई सवाल उठाए इस बात पर भी की आपराधिक न्याय प्रणाली में आरोपी को बरी करने में 30 साल लग गए तो भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली स्वयं ही आरोपी के लिए सजा बन सकती है।

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इसका उदाहरण भी देखने को मिला दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने 1993 को एक महिला की आत्महत्या प्रकरण में उसके पति पर लगे उकसाने के आरोप को रद्द कर दिया, मामले के सुनवाई जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ की सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमा शुरू होने के लगभग 10 मिनट के अंदर ही 30 साल पुराने केस में फैसला सुना दिया । फैसला सुनाते समय अदालत ने इस बात पर अफसोस जताया कि यदि आपराधिक न्याय प्रणाली को आरोपी को बरी करने में 30 साल लग गए। तो यह समझ जा सकता है कि टेस्ट आपराधिक न्याय प्रणाली खुद ही आरोपी के लिए सजा बन सकती है।

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Supreme Court: लाइव लॉ के मुताबिक

लाइव लॉ के मुताबिक कोर्ट ने कहा कि इस मामले से अलग होने से पहले केवल यह देख सकते हैं कि हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली स्वयं सजा हो सकती है। इस मामले में बिल्कुल वैसा ही हुआ अदालत को आरोपी पर फैसला लेने में महज 10 मिनट का समय लगा अदालत ने माना कि आरोपी पर आईपीसी की धारा 306 के तहत दंडनीय अपराध नहीं टिकते ।

Supreme Court: क्या था मामला चलिए आपको बताते हैं ?

मामला है 1993 का हरियाणा की एक महिला आत्महत्या कर लेती है इस घटना के बाद महिला के पति और ससुराल वालों पर पैसे मांगने और उसे परेशान करने के आरोप लगाते हैं। पुलिस आरोपी पति के खिलाफ आईपीसी की धारा 306 के तहत एफआईआर दर्ज करती है 1998 में ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को दोषी सिद्ध किया और 2008 में हाई कोर्ट केस की पुष्टि करता है।

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खुद पर लगे आरोप सिद्धि के खिलाफ शख्स ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील दायर कि आरोपी पति द्वारा सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिया गया कि निचली अदालतों ने अपील कर्ता को मृत्यु के आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी ठहराने में गलती की। उसने कहा कि इस बात का जरा भी सबूत नहीं है कि उसने अपनी पत्नी पर किसी तरह का शारीरिक या मानसिक उत्पीड़न किया हो।

क्या था पूरा मामला ?

आरोपी के दलील और उस पर लगे आरोपों में कोई सबूत न होने के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी पर दोष सिद्धि को पूरी तरह से रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में आईपीसी की धारा 306 के तहत किसी व्यक्ति को दोषी ठहराने के लिए अपराध करने के स्पष्ट मनसा होनी चाहिए। जैसा कि केस में नहीं है सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में क्या सिर्फ उत्पीड़न किसी आरोपी को आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी है।

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिर्फ अपराधिक मन स्थिति को स्पष्ट रूप से सबूत के तौर पर नहीं पेश किया जा सकता आगे अदालत ने कहा कि आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए पति को दोषी ठहारने के लिए पति के खिलाफ कोई सबूत नहीं है क्योंकि अभियोजन पक्ष द्वारा जिन सबूत पर भरोसा किया गया।

वह यह साबित नहीं कर सकते हैं कि आरोपी ने अपने कृतियों के कारण महिला को आत्महत्या के लिए उकसाया हो आगे कोर्ट ने कहा कि अगर लगातार उत्पीड़न का कोई ठोस सबूत होता है जिसके कारण पत्नी के पास अपने जीवन को समाप्त करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचता तो यह कहा जा सकता है क्या आरोपी ने अपने मृत से महिला को सुसाइड के लिए प्रेरित किया ।

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