Sallekhana: जैन मुनि आचार्य विद्यासागर महाराज ने छत्तीसगढ़ के गांव में देह त्याग दिया। उन्होंने प्राण त्यागने के लिए संलेखना प्रथा का पालन किया । चलिए आपको इस आर्टिकल में बताते हैं कि आखिर ये प्रथा क्या होती है और कैसे उसका पालन किया जाता है आपको बतादें की जैन धर्म में ये प्रथा लंबे समय से चली आ रही है।
जब किसी संत को इस बात का ज्ञान हो जाता है कि उनका अंतिम समय आने वाला है तो वह मौत से ही पहले अपने शरीर के प्रति सारे मोह को त्याग कर देते हैं वह अन्य जल का त्याग करके समाधि लगा देते हैं और इसी अवस्था में उनके प्राण निकल जाते हैं।
Sallekhana: संलेखना का मतलब क्या होता है
अब चलिए आपको बताते हैं कि संलेखना का मतलब क्या होता है। धार्मिक जानकारी के मुताबिक सत् और लेखना से मिलकर बनाएं संलेखना इसका मतलब होता है जीवन के कर्मों का सही लोखा जोखा जब किसी जैन संत को लगता है कि उनके बुढ़ापे बीमारी या को कोई समाधान नहीं है तो वह खुद ही प्रार्थना देते हैं।
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संथारा प्रथा भी कहा जाता है
इस प्रथा का उपयोग करके इसे साधु मरण भी कहा जाता है आचार्य श्री विद्यासागर ने प्राण त्याग करने से पहले आचार्य पद का त्याग किया और अपने शिष्य निर्यापक श्रवण महाराज को उत्तराधिकारी बना दिया। इस प्रथा को संथारा भी कहा जाता है कहा जाता है इस पद्धति से व्यक्ति अपने कर्मों के बंधन को कम कर देता है जिससे वह मोक्ष पा लेता है।
यह अपने जीवन के अच्छे बुरे कर्मों के बारे में विचार करने और ईश्वर से क्षमा याचना करने का भी एक तरीका है इसके लिए गुरु से अनुमति लेना होता है अगर गुरु जीवित नहीं है तो वह सांकेतिक रूप से उनसे अनुमति लेता है। यह शांति चित होकर मृत्यु के सच को स्वीकार करने की एक प्रक्रिया होती है ।
संलेखना प्रथा को आत्महत्या बताया था- राजस्थान हाईकोर्ट
आपको बता दें कि राजस्थान हाई कोर्ट ने संथारा यानी संलेखना प्रथा को आत्महत्या बता दिया था कोर्ट ने कहा था कि संलेखना करने वाले और इसके लिए प्रेरित करने वाले लोगों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलना चाहिए। इसके बाद जैन संतों में घुसा था 9 साल तक सुनवाई के बाद राजस्थान हाई कोर्ट ने अपना यह फैसला सुनाया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 20 दिन बाद ही मात्र 1 मिनट में फैसला बदल दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने संलेखना को लेकर राजस्थान हाई कोर्ट का फैसला रद्द किया और इसके अनुमति दी फैसले में कहा कि जैन समुदाय संथारा का अभ्यास करने के लिए स्वतंत्र है आपको बतादें की हर साल तकरीबन 200 से 300 लोग इस अभ्यास के जरिए शरीर त्यागते हैं सबसे ज्यादा अभ्यास का राजस्थान में होता है।